मंगलवार, 7 मई 2024

श्रमरत है मजदूर [ गीत ]

 214/2024

             


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


भारी ईंटें

उठा शीश पर 

श्रमरत है मजदूर।


तन पर मैले

वसन धरे वह

जा भट्टे के बीच।

रखता बोझ

ईंट का भारी

देह स्वेद से सीच।।


पत्नी बालक

निर्धन भूखे

हुआ  बहुत  मजबूर।


दिन भर करता

काम थकित हो

मिले न इतना दाम।

मुश्किल से ही 

मिल पाता है

रात्रि -शयन आराम।।


जुट पाता 

भी नहीं अन्न जल

परिजन  को भरपूर।


शोषण करते

पूँजीपति क्यों

बेबस  हैं  लाचार।

देह न देती

साथ काम का

पड़  जाते  बीमार।।


'शुभम्' राष्ट्र

उनका सीमित है

सब खुशियों  से दूर।


शुभमस्तु !


07.05.2024●8.15आ०मा०

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चप्पल [ बाल गीतिका ]

 213/2024

            

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सरपट    फटफट    जातीं  चप्पल।

आतीं  -  जातीं  -   आतीं  चप्पल।।


उबड़ - खाबड़   या    समतल   हो,

पदत्राण    बन     पातीं     चप्पल।


कीचड़ , पर्वत      या   हो     ढालू,

बिलकुल  नहीं     डरातीं   चप्पल।


काँटा  चुभे   न    कीचड़     लिपटे,

दोनों    पैर       बचातीं      चप्पल।


न  हो   हाथ    में अस्त्र -  शस्त्र तो,

दुश्मन    पीट     गिरातीं    चप्पल।


होतीं   कभी     हाथ   में   शोभित,

दुष्टों    को      धमकातीं     चप्पल।


'शुभम्'  बहुत   ही   गुण   से भारी,

प्रतिपक्षी      धकियातीं     चप्पल।


शुभमस्तु !


06.05.2024●5.45प०मा०

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सोमवार, 6 मई 2024

चश्मा [बाल गीतिका]

 212/2024

                

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


नाक    कान    पर  अटका  चश्मा।

हमको    राह     दिखाता   चश्मा।।


तेज    धूप    की   चौंध    न भाती,

आँखों    को     भरमाता     चश्मा।


दृष्टि   अगर     कमजोर      हमारी,

साफ -  साफ  दिखलाता    चश्मा।


यदि हो  आँख  खराब   किसी  की,

शगुन  न    बुरा    कराता    चश्मा।


मुखड़े    का    शृंगार     एक   यह,

चारों    चाँद      लगाता      चश्मा।


सूरदास      भी     सजते    इससे,

दर्शक    को    जतलाता    चश्मा।


'शुभम्'  शौक का  पूरक   कृत्रिम,

मित्रो        रंग - बिरंगा       चश्मा।


शुभमस्तु !

06.05.2024●12.30प०मा०

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रूप का अभिमान इतना! [ गीतिका ]

 211/2024

     


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


क्यों  मदों  में  चूर हैं  ये आज की नव गोरियाँ।

समझतीं  नर को  नहीं हंकार में भर छोरियाँ।।


रूप का  अभिमान इतना  अप्सरा भी मात है,

चढ़ रही हैं आज उनके भाल पर क्यों त्यौरियाँ।


चार अक्षर  पढ़   लिए  तो शारदा अवतार बन,

मारती हैं कवि पुरुष को शब्द की शत गोलियां।


छू   न  जाए  सभ्यता  का  एक पल्लू  देह  से,

मारती  हैं  व्यंग्य   की  मीठी  दुधारी  बोलियाँ।


भेदभावों   की   खड़ी   दीवार उर के बीच   में,

भर  रही  हैं  माँग में किस नाम की वे   रोलियाँ!


नाम विमला  शांति कमला रख लिए सुंदर बड़े,

परुषता  मन   में भरी  है  कर  रही बरजोरियाँ।


'शुभम्'  नारी  योनि का देखा बहुत अपमान ये,

नारियाँ  ही  कर  रही   हैं नारियों की खोरियाँ।


शुभमस्तु !


06.05.2024●8.45आ०मा०

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आज की नव गोरियाँ [ सजल ]

 210/2024

         

समांत    :  इयाँ

पदांत     : अपदांत।

मात्राभार : 26

मात्रा पतन : शून्य।


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


क्यों  मदों  में  चूर हैं  ये आज की नव गोरियाँ।

समझतीं  नर को  नहीं हंकार में भर छोरियाँ।।


रूप का  अभिमान इतना  अप्सरा भी मात है।

चढ़ रही हैं आज उनके भाल पर क्यों त्यौरियाँ।।


चार अक्षर  पढ़   लिए  तो शारदा अवतार बन।

मारती हैं कवि पुरुष को शब्द की शत गोलियां।।


छू   न  जाए  सभ्यता  का  एक पल्लू  देह  से।

मारती  हैं  व्यंग्य   की  मीठी  दुधारी  बोलियाँ।।


भेदभावों   की   खड़ी   दीवार उर के बीच   में।

भर  रही  हैं  माँग में किस नाम की वे   रोलियाँ!!


नाम विमला  शांति कमला रख लिए सुंदर बड़े।

परुषता  मन   में भरी  है  कर  रही बरजोरियाँ।।


'शुभम्'  नारी  योनि का देखा बहुत अपमान ये।

नारियाँ  ही  कर  रही   हैं नारियों की खोरियाँ।।


शुभमस्तु !


06.05.2024●8.45आ०मा०

                     ●●●

नारी बनाम गलती [कुंडलिया]

 209/2024

             


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

माने अपनी लेश भर , गलती   कभी न   एक।

देखे  बिना  न  आँख  से,  नारी   वह प्रत्येक।।

नारी  वह    प्रत्येक, ईश   की  अद्भुत   रचना।

आठ  पहर  का  साथ,पुरुष  यह कैसे बचना।।

'शुभम्'  सत्य  यह बात,सदा वह अपनी ताने।

देते    रहो    प्रमाण, आपकी   एक  न    माने।।


                         -2-

नारी   से  कहना   नहीं, गलती  करो अनेक।

दे दें   भले  प्रमाण   भी,   एक  तुम्हारी टेक।।

एक  तुम्हारी  टेक, कभी   मैं  गलत न होती।

लगा  रहे  आरोप , झूठ   कह-कह  कर रोती।।

'शुभम्' न  डालो  हाथ,साँप का बिल है भारी।

करो  मौन  स्वीकार, गलत कब होती   नारी।।


                        -3-

पहले - पहले  पुरुष की,रचित हुई है देह।

बाद विधाता ने  करी, नारी सृष्टि स्व गेह।

नारी  सृष्टि  स्व गेह,भूल क्या ऐसी उनसे।

हुई  सृजन में  दीर्घ, भरी  नारी ठनगन से।।

'शुभम्'  सोचते  ईश,मार  नहले पर दहले।

रच दी  नारी शुभ्र, नहीं  पर  नर  से पहले।।


                         -4-

नारी   है  संसार   में,  प्रभु  की महती  भूल।

कहते   हैं   परमात्मा,   बने पुरुष-अनुकूल।।

बने पुरुष-अनुकूल,झूठ निकला वह  वादा।

कर्म  करे   प्रतिकूल,उलट  ही हुआ इरादा।।

'शुभम्' करें क्या लोग,पुरुष पर पड़ती भारी।

पाल   लिया   क्या  रोग,नहीं फुलवारी नारी।।


                         -5-

करते  हैं  उपहास  क्यों, वृद्ध विधाता  आज।

नहले  पर  दहला  लगा, हटा दिया नर-ताज।।

हटा  दिया  नर -ताज, गलतियों की ये क्यारी।

माने  एक  न  बात,खिल रही घर-घर   नारी।।

'शुभम्' जननि का रूप, कभी पत्नी ला धरते।

खोद  घरों  में   कूप, विधाता  नाटक करते।।


शुभमस्तु !

06.05.2024●7.30आ०मा०

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पहले वाली बात नहीं है [ नवगीत ]

 208/2024

      

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


पहले वाली

बात नहीं है,

पाँच साल पहले जैसी।


बहने लगीं

हवाएँ उलटी

शीत युद्ध अनिवार चले।

मन में चलीं

कटारी बरछी

पड़ती बीच दरार छले।।


रुख बतलाते

वर्षा होगी

नहीं  प्रबल वैसी-वैसी।


एक दूसरे को

दिखलाना

 चाह रहे दोनों नीचे।

सत्तासन की

शतरंजों में

गोट मुट्ठियों में  भींचे।।


अच्छे ये

आसार नहीं हैं

होनी है ऐसी -तैसी।


समय एक -सा

कभी न रहता

प्यादा   फ़र्जी बन जाता।

चालें अपनी

चले न सीधी

चलते - चलते तन जाता।।


गर्भ समय के

जो पलता है

कर देता हालत ऐसी।


शुभमस्तु !


05.05.2024●2.30प०मा०

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किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...